सरोजनीनगर:जेष्ठ माह के प्रथम मंगलवार को जगह-जगह आयोजित हुए भंडारे,क्लिक करें और भी खबरें

-शांति नगर में प्रसाद वितरण करते हुए अविनेंद्र सिंह राठौड़

 लखनऊ। जेष्ठ के प्रथम मंगलवार को लेकर सरोजनीनगर क्षेत्र में हनुमान के भक्तों ने कई जगह पर भंडारे का आयोजन किया। सरोजनीनगर के शांति नगर में अवध प्रेस क्लब के सह संरक्षक अविनेंद्र सिंह राठौड़ के द्वारा आयोजित किए गए भंडारे में विशाल सिंह बिट्टू शशिकांत तिवारी प्रत्युष सिंह अमन सिंह लालू यादव हिमांक सिंह राघवेंद्र सिंह वीरेंद्र सिंह निर्भय सिंह आशीष तिवारी सत्येंद्र वर्मा उर्फ गोलू आर्यन आदि वर्मा अमित सिंह आदि लोग मौजूद रहे।इसी क्रम में ग्राम सभा नारायन खेड़ा में सतीश साहू और बनी गांव में राम लखन के भी द्वारा भंडारे का आयोजन किया गया। जिसमें पूड़ी सब्जी नुक्ती शरबत आदि की व्यवस्था लोगों ने की। इसके अलावा भी क्षेत्र में कई जगहों पर भंडारो का आयोजन हनुमान के भक्तों द्वारा किया गया जिसमें भक्तों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और प्रसाद का स्वाद चखा।

पौराणिक सई नदी में गिर रहें गन्दे नाले पानी हुआ दूषित,लाखों लोगों के लिए उत्पन्न हो सकता है पानी पीने का संकट

-बनी गांव धोबी घाट पर सई नदी में गिर रहा नाले से गंदा पानी,नदी में व्याप्त गंदगी के सड़ने से फैल रही दुर्गंध

भीषण गर्मी के दिनों में लाखों लोगों और पशु पक्षियों को जीवन प्रदान करने वाली सई नदी की अविरल धारा धीरे-धीरे करके बंद हो जाने के बाद इसका पानी दूषित हो गया, क्योंकि इसमें तमाम नाले जोड़ दिए गए हैं। जिनका मैला कुचैला पानी इसी नदी में गिर रहा है। जिसके चलते इस सई नदी का पानी बदबू मारने लगा है। जनपद हरदोई से निकली इस सई नदी के आस-पास सैकड़ो गांव व कस्बे पड़ते हैं। इस नदी के पानी की वजह से जलस्तर काफी अच्छा रहता है। सरोजनीनगर क्षेत्र के कई गांव इस नदी के आसपास पढ़ते हैं। जहां के लोग इन गर्मी के दिनों में इसी नदी में स्नान कर गर्मी से बचाव करते थे, परंतु पिछले कुछ वर्षों से हालात इतने अधिक नदी के खराब हो गये है कि इसका पानी नहाने लायक भी नहीं बचा है।नहीं तो पहले लोग इसी में नहाने के अलावा इसी का पानी पीकर प्यास बुझाते थे।भीषण गर्मी के इन दिनों में पशु पंक्षी इसमें पानी पीकर खूब नहाते भी थे। इस नदी का पानी अब इतना अधिक गंदा हो चुका है जिसका पानी पीने लायक तो क्या नहाने के काबिल भी नहीं रह गया है। यहां तक पशु पक्षी भी इस पानी के पीने और नहाने से दूर हो रहे हैं, क्योंकि इस नदी के पानी से इतनी अधिक दुर्गंध आती है। जिसकी वजह से पशु पक्षी भी इसके आसपास बहुत ही काम आते हैं। इस सई नदी में काकोरी से निकला नगवा नाला भी बंथरा क्षेत्र की ग्राम सभा बनी में जुड़ा हुआ है। नगवा नाले में राजधानी लखनऊ शहर सहित क्षेत्र के कई गंदे नालों का मैला कुचैला पानी इसी में गिराया गया है। सई नदी और नगवा नाले में बह रहे तमाम गंदा पानी नदी के पानी को पूरी तरीके से बर्बाद कर दिया है। इस नदी में सैकड़ो गांवों और कस्बों यहां तक शहरी क्षेत्रों का तमाम गंदगी से भरा पानी आ रहा है।जिसका आलम यह है कि इस सई नदी में पल रही मछलियां भी बदबू मार रही हैं। इस नदी का बहाव रुक जाने से पानी सड़ने लगा है। गंदगी कितनी अधिक इसमें हो गई है इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि नदी का पानी काला पड़ गया है। नदी में पानी कम होने से गर्मी की तपिश से पानी गर्म हो जा रहा है।जिससे मछलियां भी परेशान होकर बाहर की तरफ भागने लगी है। बनी के राजपूत रावत बताते हैं कि भीषण गर्मी के कारण नदी का पानी खौलने लगा है जिससे बचने के लिए नदी की मछलियां नदी के बाहर उछलकर आ जाती है या फिर यह कहा जाए गर्मी का असर मछलियों पर भी पड़ रहा है और वो तड़पने लगी है।ग्राम सभा बनी के रहने वाले कई लोगों ने बताया कि इस सई नदी में मछलियां काफी बड़ी तादाद में है, लेकिन गंदगी के कारण खाने लायक नहीं है,क्योंकि इनसे जहां अजीब तरीके की दुर्गंध निकलती हैं, वही इनका स्वाद भी खाने के समय काफी खराब लगता है, इसलिए इनका शिकार भी लोग काम करते हैं। लोगों का यह भी कहना है पहले जब पानी साफ सुथरा रहता था तब मछलियां का शिकार हर दिन शिकारी किया करते थे और इन्हीं मछलियों को बेच कर खर्चा भी निकालते थे, लेकिन अब यह मछलियां बाजारों और मंडी में भी नहीं बिकती है। इसलिए शिकारी इनका शिकार कम करते हैं जिससे उनकी संख्या बहुत हो गई है। ज्ञात हो कि जबकि इसी नदी का इतिहास पौराणिक ग्रंथों में भी है। श्री रामचरितमानस रामायण में लिखा है सई उतर गोमती नहाएं चौथे दिवस अवधपुर जाई। लंका पर विजय पाने के बाद राजा रामचन्द्रजी इस नदी को पार करते हुए अयोध्या पहुचे थे।

घंटों नदी के पानी पड़े रहते थे मवेशी गर्मी से मिलती थी राहत

इस सई नदी के किनारे बसे गांवों के चरवाहे अपने मवेशियों को लेकर चराने के लिए जब जाते थे तब वो दोपहर के समय किसी नदी किनारे आसपास लगे पेड़ों के नीचे स्वयं बैठ जाते थें और मवेशियों में भैंस नदी के पानी में चली जाती थी। जो पूरी दोपहर नदी के पनी में पड़ी रहती थी और जैसे ही शाम का समय होता था नदी से बाहर निकाल कर चरने के लिए चल देती थी। इसी पानी में चरवाह अपने जानवरों को खूब नहलाते थे उनकी गंदगी खरहरा आदि से रगड़कर धुलाई करते थे। अब इसी नदी में अगर भूल से भी कोई पर रख दे तो दाने पड़ जाते हैं खुजली होने लगती हैं, क्योंकि गंदगी का आलम यह है कि इसमें जमा सेवार और जलकुंभी सड़ रही है। इसकी स्थिति देखकर कोई नहीं कह सकता कि यह वही सई नदी है जिसमें निर्मल जलधारा बहा करती थी।

शासन प्रशासन ने नदी की खराब दुर्दशा पर नहीं दिया ध्यान

सई नदी के हालात कोई एक-दो दिन या एक दो वर्षों में खराब नहीं हुए लगभग दो दशकों से अधिक का समय हो गया है नदी के लगातार हालात खराब होती चले आए हैं।जिसको समय-समय पर मीडिया ने यह मुद्दा बनाकर उठाया भी लेकिन इसके बावजूद इसको कभी भी शासन और प्रशासन संज्ञान में नहीं लिया। जिसके चलते लाखों करोड़ों लोगों को स्वच्छ जल देने वाली नदी दयनीय स्थिति से गुजर रही है। अगर कहीं इस नदी की साफ सफाई नहीं कराई गई और भी हालात खराब होते जाएंगे एवं नदी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। एक बार यही नदी पूरी तरीके से सुख गई थी और इसमें बच्चे गुल्ली डंडे क्रिकेट खेल रहे थे। ग्रामीण मवेशियों को चरा रहे थे उस समय मीडिया में खबर छपने के बाद पानी छोड़ा था, लेकिन उसके बद फिर नजर अंदाज कर दिया गया। इस गंभीर समस्या को क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों ने भी कहीं पर नहीं उठाया जिसका मलाल क्षेत्रीय लोगों में समय-समय पर देखने को मिलता है।

Aaj National

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