LUCKNOW:बसपा शून्य,लोकसभा नही पहुँचा एक भी सदस्य,क्लिक करें और भी खबरें

-अकेले दम पर लड़ना पड़ गया महंगा

लखनऊ 04 जून।  बसपा को लोकसभा चुनाव में शिकस्त के बाद वजह तलाशी जाने लगी है। अकेले दम पर चुनाव लड़ने की बसपा की रणनीति का उल्टा असर रहा और पार्टी को  इतिहास की सबसे करारी हार का सामना करना पड़ गया। बसपा यूपी की 80 में  80 सीटें हार गई है।गठबंधन को लेकर मायावती की हठ ने दलित वोट को बिखरने पर मजबूर कर दिया, जिसका फायदा विपक्षी दलों को हुआ।बसपा की हार की पहली व  वजह कार्यकर्ताओं से दूरी है। पार्टी के शीर्ष नेता पांच साल तक खुद को बंद कमरे में समेटे रहे, जिसकी वजह से कार्यकर्ताओं के बीच उनकी पकड़ कमजोर पड़ती गयी।पार्टी का चुनाव अकेले लड़ना दूसरी वजह माना जा सकता है। बसपा ने बदलते चुनावी समीकरणों से सबक नहीं लेते हुए अकेले दम पर चुनाव लड़ने की रणनीति बनाई, जो उसकी जीत की राह का रोड़ा बन गयी। तीसरी वजह पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले का फेल होना बताया जा रहा है। भाजपा विजय रथ को यूपी में रोकने और सपा प्रत्याशियों की जीत में रोड़ा अटकाने के लिए जिन प्रत्याशियों का चयन किया गया, वह चुनाव में नाकाम साबित हुए। चौथी वजह बसपा के युवा चेहरे आकाश आनंद को चुनावी परिदृश्य से बाहर करना है। आकाश की जनसभाओं में भीड़ उमड़ रही थी, लेकिन उनके एक भड़काऊ भाषण ने उसकी सियासी तकदीर को बदल दिया। इसका असर युवा कार्यकर्ताओं पर हुआ और वह आजाद समाज पार्टी को बतौर विकल्प देखने लगे।
पांचवीं वजह बसपा का अपने सांसदों पर भरोसा नहीं करना मानी जा सकती है। बसपा ने अपने आठ वर्तमान सांसदों को टिकट नहीं दिया, जिसकी वजह से वह अन्य दलों में चले गए। छठी वजह पार्टी शीर्ष नेतृत्व का चंद पदाधिकारियों पर भरोसा करना रहा। जोनल कोआर्डिनेटर टिकट फाइनल करते रहे और शीर्ष नेतृत्व बिना सोचे-समझे उस पर मुहर लगाता रहा।सातवीं वजह से 2022 के विधानसभा चुनाव से सबक नहीं लेना रहा। पार्टी ने यह चुनाव भी अकेले ही लड़ा था, जिसके बाद उसका केवल एक विधायक ही जीत सका था।

सपा ने बेटियों पर जताया भरोसा,अखिलेश का प्रयोग रहा कारगर

लोकसभा चुनाव में यूपी की अहमियत को कोई भी नकार नहीं सकता। सबसे अधिक 80 सीटों वाले इस सूबे में सियासी पार्टियां तरह-तरह का प्रयोग करती हैं, कभी संयोग तो कभी के प्रयोग के भरोसे हर कोई राजनीति में साम दाम दंड भेद का इस्तेमाल करता है। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने भी यूपी में दांव खेला। वो ये कि उत्तर प्रदेश में सियासत की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने बेटियों को आगे कर दिया।समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश की 5 लोकसभा सीट गोंडा, मछलीशहर, कैराना, मैनपुरी और गाजीपुर में बड़ा दांव खेला। कुछ सीटों पर राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए अखिलेश यादव की सपा ने बेटियों को टिकट दिया, तो कुछ सीटों पर बेटियों को सियासत में आगे कर दिया।लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के विभिन्न इलाकों की बेटियां अपनों की सियासत की विरासत को आगे बढ़ाती नजर आईं। इनमें से किसी बेटी ने अपने माता पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेवारी अपने कंधों पर उठाई, तो कोई खुद चुनावी मैदान में उतरकर परिवार का मान सम्मान बढ़ाने में लगी रहीं। सपा ने बेटियों को लोकसभा का टिकट देकर उन पर अपना विश्वास जताया है। आपको ऐसी ही 5 बेटियों के बारे में बताते हैं।समाजवादी पार्टी ने पूर्व केंद्रीय इस्पात मंत्री और सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी रहे बेनी प्रसाद वर्मा की पौत्री श्रेया वर्मा को गोंडा से टिकट दिया। गोंडा के पड़ोसी जिला बाराबंकी की रहने वाली श्रेया ने स्कूली पढ़ाई वेल्हम गर्ल्स स्कूल देहरादून से की है। दिल्ली के रामजस कॉलेज से इकोनॉमिक्स में ऑनर्स करने वाली श्रेया वर्मा ने राजनीति की शिक्षा अपने बाबा और पिता से ली है। उन्होंने ही इन्हें बारीकियों को सिखाया है। श्रेया के पिता राकेश वर्मा भी विधायक और राज्य सरकार में मंत्री रहे हैं। वह कुछ साल पहले सपा में आईं। उन्हें महिला सभा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बनाया गया। 2022 के चुनाव में अपने पिता राकेश वर्मा के प्रचार की जिम्मेदारी इन्हीं के कंधों पर थी। इसी अनुभव के बल पर वह गोंडा से अपना भाग्य आजमाया,प्रदर्शन अच्छा रहा लेकिन नतीजा ठीक नहीं आया।  उनके खिलाफ इस सीट से भाजपा के कीर्तिवर्धन सिंह चुनाव मैदान में थे।समाजवादी पार्टी ने मछलीशहर से अधिवक्ता प्रिया सरोज को इस चुनाव में अपना उम्मीदवार बनाया। ये तीन बार के सांसद और वर्तमान 2022 में मछलीशहर की केराकत सीट से विधायक तूफानी सरोज की बेटी हैं। कानून की पढ़ाई करने वाली प्रिया ने अब लोकसभा का रास्ता अख्तियार करने के लिए राजनीति का रास्ता चुना है। दिल्ली के एयरफोर्स स्कूल से 12वीं तक और फिर दिल्ली यूनिवर्सिटी से आर्ट्स में ग्रेजुएशन करने वाली प्रिया सरोज ने 2022 में लॉ की पढ़ाई पूरी कर फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में बतौर अधिवक्ता प्रैक्टिस कर रही हैं। प्रिया के खिलाफ इस सीट से भाजपा के बीपी सरोज ताल ठोक रहे हैं।सपा ने इस चुनाव में कैराना लोकसभा सीट से पूर्व सांसद मुनव्वर हसन की बेटी इकरा हसन पर भरोसा जताया। इकरा हसन पिछले कई सालों से कैराना क्षेत्र की राजनीति में सक्रिय हैं। उनकी माता तबस्सुम हसन भी इसी सीट से सांसद रही हैं। कैराना से सपा विधायक नाहिद हसन उनके बड़े भाई हैं।
लंदन की यूनिवर्सिटी से कानून की शिक्षा हासिल करने वाली इकरा हसन ने वर्ष 2022 में अपने भाई के जेल जाने के बाद उनके प्रचार की कमान संभाली थी और जितवाया भी। इकरा हसन पूर्व में जिला पंचायत सदस्य पद पर अपनी किस्मत आजमा चुकी हैं। इनके खिलाफ भाजपा के प्रदीप चौधरी हैं।गाजीपुर से पांच बार विधायक और दो बार सांसद बने सपा प्रत्याशी अफजाल अंसारी ने अपनी बेटी नुसरत अंसारी की भी राजनीति में एंट्री करा दी है, जो अपने पिता की जीत के लिए प्रचार करती देखी जा रही है। इसके साथ ही नुसरत ने इस सीट से नामांकन भी दाखिल किया है।
सुप्रीम कोर्ट में अफजाल के खिलाफ एक मामले में सुनवाई चल रही है, जिस पर कभी भी फैसला आ सकता है। माना जा रहा था कि यदि अफजाल का नामांकन फैसले के चलते रद्द कर दिया जाता है तो उनकी बेटी को आगे कर दिया जाएगा। नुसरत ने अपने पिता के चुनाव प्रचार में शिव मंदिर जाकर पूजा-अर्चना की, महिलाओं के साथ बैठकर कीर्तन भी किया।उत्तर प्रदेश पूर्व मुख्यमंत्री और सपा सुप्रिमो अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव मैनपुरी से चुनाव मैदान में हैं। मैनपुरी से यह उनकी दूसरी पारी है। इस बार उनकी बेटी अदिति यादव ने भी अपनी मां के लिए जनता के बीच जाकर वोट मांगती नजर आईं। अदिति के प्रचार-प्रसार से डिंपल यादव को मतदाताओं का काफी सपोर्ट मिलता दिखा। अदिति यादव लंदन से पढ़ाई कर रही हैं। इस सीट पर डिंपल के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी ने विधायक जयवीर सिंह को मैदान में उतारा है।इन पांच बेटियों पर अखिलेश यादव ने इस चुनाव में भरोसा जताया। यदि यूं कहा जाए कि उत्तर प्रदेश की सियासत में बेटियां अब विरासत को आगे बढ़ा रही हैं, तो गलत नहीं होगा।
Aaj National

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