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मथुरा उपमन्यु ने बसपा छोड़ी मेरी टिकट कटने से ब्राह्मण समाज में नाराजगी बसपा ने उन्हें मथुरा संसदीय सीट से लोकसभा प्रत्याशी घोषित किया था फिर टिकट काट दी

मथुरा बहुजन समाज पार्टी से पहले लोकसभा प्रत्याशी घोषित हुए छावनी परिषद के पूर्व वायस चेयरमैन पण्डित कमलकांत उपमन्यु एडवोकेट ने टिकट कटने से निराश होकर बसपा की सक्रियता राजनीति से संन्यास लिया। आज अनौपचारिक पत्रकार वार्ता करते हुए उपमन्यु ने कहा कि मुझे जिले के सभी क्षेत्रों से सभ्रांत नागरिकों के विशेष कर अपने समाज के जिम्मेदार लोगों के फोन आ रहे हैं कि बसपा ने ब्राह्मण को टिकट दी फिर काटी क्यों इससे ब्राह्मण समाज का अपमान हुआ है , और उसके सम्मान को ठेस पहुंची है इसका उत्तर में आज तक लोगों को नहीं दे पा रहें हैं और मजे की बात यह भी है कि जो बसपा प्रत्याशी घोषित किए हैं उन्होंने आज तक ना मुझसे संपर्क किया है मुझे यह बात भी अखर रही है कि टिकट की तो टिकट कटी फिर मैं बसपा में हूं तो उन्होंने संपर्क क्यों नहीं किया। इसलिए मेरा बसपा की सक्रिय राजनीति में रहने का अब कोई औचित्य शेष नहीं रहा है। इसलिए मैने बसपा की सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने का निर्णय लिया है। मेरा राजनीतिक कैरियर 1998 से शुरू हुआ जब मैं छावनी परिषद का पार्षद चुना गया था इसके बाद निर्विरोध वायस चेयरमैन और छावनी परिषद सिविल एरिया और फाइनेंस कमेटी का भी अध्यक्ष र्निविरोध चुना गया था और 99 में मुझे बसपा के संस्थापक अध्यक्ष मान्यवर कांशीराम साहब एवं बहन कुमारी मायावती ने मथुरा संसदीय क्षेत्र से लोकसभा का प्रत्याशी बनाया था। उस समय ट्राई एंगल में कुछ हजार वोटों से हार गया था। ठीक 25 साल बाद बहन जी ने घर से बुलाकर के मुझे पुन: संसदीय क्षेत्र से 24 के चुनाव में लोकसभा प्रत्याशी बनाया एक हफ्ते में मैंने पूरे जिले में सघन दौरा करके एक अलख जगाया और माहौल क्रिएट किया किंतु अचानक कुछ लोगों को मैं अखरने लगा तो ऊपर गलत बातें बताकर के मेरी टिकट कटवाई गई। मैने फिर भी पार्टी के निर्णय को शिरोधार्य किया किंतु उस दिन से आज तक जो पार्टी प्रत्याशी घोषित हुए हैं उन्होंने मुझसे दूरभाष तक पर संपर्क नहीं किया। पार्टी के जो कैंडिडेट को लेकर के जगह-जगह सभाएं कर रहे हैं उन लोगों ने भी मुझे पार्टी प्रत्याशी के लिए कोई बात नहीं की। यही नही जो लोग पार्टी के संस्थापक हैं उनको भी संपर्क नहीं किया जा रहा है और उनकी उपेक्षा की जा रही है। इसलिए मुझे लगता है कि मुझे बसपा की सक्रिय राजनीति से दूर रहकर सन्यास ले लेना चाहिए।

रिपोर्ट मो. फार्रुख

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