लेख:मजहबी कट्टरता, आतंक और अराजकता का प्रतीक पीएफआई

” PFI को प्रतिबंधित करने पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए क्योंकि वह लोकतांत्रिक तौर-तरीकों का सहारा लेकर लोकतंत्र को ही नष्ट करने का काम कर रहा है। अपनी संदिग्ध गतिविधियों के कारण एक लंबे समय से विभिन्न एजेंसियों के निशाने पर चल रहे संगठन पापुलर फ्रंट आफ इंडिया यानी पीएफआइ के ठिकानों पर देशव्यापी छापों के बाद यह तथ्य सामने आने पर हैरानी नहीं कि उसे विभिन्न देशों से अनुचित तरीके से जो चंदा मिल रहा था, उसका गलत इस्तेमाल किया जा रहा था। चिंता की बात केवल यह नहीं कि PFI विदेशी चंदे को स्थानीय चंदे के रूप में दर्शा रहा था, बल्कि यह भी है कि उसके तमाम सदस्य देशविरोधी गतिविधियों में शामिल दिख रहे थे। इसी कारण पिछले दिनों उसके सौ से अधिक सदस्यों को गिरफ्तार किया गया। “

 

        लेखक-प्रेेम शर्मा

NIA की छापामारी अचानक नही हुई। पिछले लम्बेे अरसे से PFI की मजहबी कट्टरता, आतंकी ट्रेनिग, अराजक गतिविधियों और देश के 23 राज्यों में प्रतिबंधित संगठन सिमी के सदस्यों को मिलाकर इसका विस्तार पर उच्चस्तीय मंथन के बाद इतनी बड़ी आतंकी कनेक्शन के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक की गई। जांच एजेंसियों ने पहले करीब 11 राज्यों में उसके 106 ठिकानों पर छापेमारी की है और 100 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया है। इसके बाद छिटपुट इनपुट के आधार पर लगभग 50 और लोगों को जगह जगह से गिरफ्तार किया जा चुका है। यह कार्रवाई जारी रहेगी। अभी तक जॉच एजेसिंया पीएफआई को नागरिकता कानून के खिलाफ हुए हिंसक प्रदर्शन, जबरन धर्मांतंरण, मुस्लिम युवकों में कट्टरता फैलाने, धनशोधन और प्रतिबंधित संगठनों से संबंध बनाए रखने के आधार पर कार्रवाई कर रही है। जहॉ तक खाड़ी देशो से फंडिग की बॉत की जाए तो इस संगठन को 2013 से 2021 तक 120 करोड़ रूपये की फंडिग की गई।

यही नही आज से दस वर्ष पूर्व ही इस संगठन को लेकर तत्काली न केरल की कांग्रेस सरकार मुख्यमंत्री ओम्मन चांडी ने पीएफआई को सिमी प्रतिबिंब बताया था। इसके दो वर्ष बाद न्यायालय को दिए शपथ पत्र में कहा गया था कि पीएफआई का छिपा एजेण्डा इस्लामीकरण है। यानि स्पष्ट है कि मजहब के आधार पर पीएफआई देश में मजहबी कट्टरता, आतंक और अराजकता को बढ़ावा दे रही है। अब जबकि एनएनआई ने एक बड़ा कदम उठाया लिया है तो राज्य सरकारों को अपनी इंटेलीजेंस एजेसियों को निर्देश देने चाहिए कि इन संगठन के सदस्यों को स्थानीय स्तर पर मदद करने वालों की भूमिका कही संदिग्ध तो नही है ?पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पहले भी अपने विचारों की वजह से शक के दायरे में रहा है। पीएफआइ पर जैसी अराजक और आतंकी गतिविधियों में लिप्त होने के गंभीर आरोप लगे हैं उन्हें देखते हुए उसे प्रतिबंधित करने पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए क्योंकि वह लोकतांत्रिक तौर-तरीकों का सहारा लेकर लोकतंत्र को ही नष्ट करने का काम कर रहा है। अपनी संदिग्ध गतिविधियों के कारण एक लंबे समय से विभिन्न एजेंसियों के निशाने पर चल रहे संगठन पापुलर फ्रंट आफ इंडिया यानी पीएफआइ के ठिकानों पर देशव्यापी छापों के बाद यह तथ्य सामने आने पर हैरानी नहीं कि उसे विभिन्न देशों से अनुचित तरीके से जो चंदा मिल रहा था, उसका गलत इस्तेमाल किया जा रहा था। चिंता की बात केवल यह नहीं कि पीएफआइ विदेशी चंदे को स्थानीय चंदे के रूप में दर्शा रहा था, बल्कि यह भी है कि उसके तमाम सदस्य देशविरोधी गतिविधियों में शामिल दिख रहे थे। इसी कारण पिछले दिनों उसके सौ से अधिक सदस्यों को गिरफ्तार किया गया।यह संगठन कानून के शासन के साथ किस तरह शांति व्यवस्था के लिए खतरा बन चुका है, इसका प्रमाण अपने यहां पड़े छापों के विरोध में केरल में बुलाए गए बंद के दौरान की गई उसके लोगों की हिंसा से मिलता है। इस हिंसा से एक तरह स्वतः प्रमाणित हो गया कि इस संगठन के इरादे नेक नहीं। इस संगठन पर आतंकी गतिविधियों में लिप्त होने के आरोप न जाने कब से लग रहे हैं। 2007 से लेकर अब तक इस संगठन की हर गतिविधियों का लेखा जोखा ही इस संगठन पर राष्ट्रीय प्रतिबंध का मुख्य आधार बनेगा।पीएफआई के संदिग्ध गतिविधियों के कारण कई राज्य उस पर पाबंदी लगाने की संस्तुति कर चुके हैं।

पीएफआइ अपना उद्देश्य कुछ भी बताए, यह किसी से छिपा नहीं कि उसकी गतिविधियां उसे कठघरे में खड़ा करती हैं। एक तथ्य यह भी है कि खुद केरल सरकार उच्च न्यायालय के समक्ष यह कह चुकी है कि पीएफआइ प्रतिबंधित आतंकी संगठन सिमी का बदला हुआ रूप है।पीएफआइ पर जैसी अराजक और आतंकी गतिविधियों में लिप्त होने के गंभीर आरोप लगे हैं, उन्हें देखते हुए उसे प्रतिबंधित करने पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए, क्योंकि वह लोकतांत्रिक तौर-तरीकों का सहारा लेकर लोकतंत्र को ही नष्ट करने का काम कर रहा है। पीएफआइ अपनी छात्र शाखा और राजनीतिक शाखा बनाकर जिस तरह देश के अधिकांश राज्यों में सक्रिय हो गया है, वह शुभ संकेत नहीं। इसलिए और नहीं, क्योंकि विभिन्न राज्यों में छोटे दल उसकी राजनीतिक शाखा के सहायक बन गए हैं। वास्तव में इसी कारण कई संगठन उसके समर्थन में बोल रहे हैं।पीएफआइ की हरकतें यही बताती हैं कि वह एक ऐसी विष बेल है, जिसकी जड़ें काटने में देर नहीं की जानी चाहिए। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि पीएफआइ का हाथ न केवल नागरिकता संशोधन कानून विरोधी देशव्यापी हिंसा के साथ हिजाब के खिलाफ हुए अराजक प्रदर्शनों में दिखा, बल्कि अन्य ऐसी घटनाओं में भी, जिससे इस नतीजे पर पहुंचने के अलावा और कोई उपाय नहीं कि वह आतंकी संगठनों सरीखी विषाक्त विचारधारा से लैस है। सबकी निगाह जांच एजेंसियों की ओर है, ताकि पीएफआई की गतिविधियों के बारे में खुलासा हो सके।

एनआईए को पूरी मुस्तैदी से किसी भी खतरे को टालने की कोशिश करनी चाहिए। दक्षिण भारत में पीएफआई की गतिविधियों को ज्यादा संदिग्ध माना जा रहा है, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु से सर्वाधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है। संगठन से जुड़े बडे़ नेताओं को गिरफ्तार करके जांच हो रही है। बीते दिनों भी एनआईए ने आंध्र प्रदेश के अलग-अलग स्थानों पर छापेमारी की थी। आरोप यह है कि सिमी पर प्रतिबंध के बाद अस्तित्व में आया यह संगठन हिंसा भड़काने की साजिश करता है और गैर-कानूनी गतिविधियों में लिप्त रहता है। नुपूर शर्मा का प्रकरण हो या हिजाब का मामला, इस संगठन का रुख बहुसंख्यक वर्ग और सरकार के लिए आक्रामक ही लगता है।

ज्ञात हो कि कर्नाटक की सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में बताया है कि इस संगठन की भूमिका हिजाब मामले में भड़काऊ रही है। इससे भी एनआईए को छापेमारी की कार्रवाई को बल मिला है। यह संगठन दावा करता है कि वह समाज के वंचित वर्गों के सशक्तीकरण के लिए काम करता है, लेकिन उसके कार्यकर्ताओं पर पिछले लगभग डेढ़ दशक से सवाल उठते रहे हैं। केरल, कर्नाटक में तो विशेष रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और पीएफआई के कार्यकर्ता सीधे मुकाबले में रहे हैं। संघ के कार्यकर्ताओं पर हिंसक हमले से भी इस संगठन के तार जुड़े बताए जाते हैं। अब मामला एनआईए के पाले में है, उसे सावधानी और संवेदना से आगे की कार्रवाई को अंजाम देना चाहिए। यदि पीएफआई के तार वाकई आतंकवाद से जुड़े हैं, तो उसे काटने में ही सबकी भलाई है, लेकिन यह ध्यान रखना होगा कि किसी निर्दाेष को सलाखों को पीछे न रहना पड़े। किसी भी संगठन में सभी लोग एक जैसे नहीं होते हैं। पहले भी कुछ ऐसे लोगों के खिलाफ सुरक्षा एजेंसियों ने कार्रवाई की थी, जो बाद में निर्दाेष पाए गए। आतंकवाद गंभीरतम अपराध है, अतरू इससे जुड़े किसी भी मामले में किसी निर्दाेष को एक दिन भी हिरासत में न रहना पड़े, इससे सुरक्षा एजेंसियों की शक्ति में ही इजाफा होगा। समूह में कार्रवाई करने से बेहतर है कि पहले ही जांच से अपराध तय करने के बाद कार्रवाई की जाए और अदालत में हर मामले को साक्ष्य से सिद्ध किया जाए। यह सही है कि आज के समय में ऐसे संगठन प्रतिबंधित किए जाने की स्थिति में नए नाम से नए सिरे से संगठित हो जाते हैं, लेकिन उनकी कमर तोड़ने के लिए यह आवश्यक है कि उन्हें पूरी तरह बेनकाब कर प्रतिबंधित किया जाए।

Aaj National

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