LUCKNOW:अभियंता काली पट्टी बांधकर करेंगे अपना नियमित काम,क्लिक करें और भी खबरें

  • REPORT BY:PREM SHARMA
    EDITED BY:AAJNATIONAL NEWS

लखनऊ। उत्तर प्रदेश पावर ऑफिसर्स एसोसिएशन की तरफ से आज पूरे प्रदेश में दलित व पिछड़े वर्ग के अभियंताओं से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए वार्ता की गई और सभी से कहा गया कि कल आप काली पट्टी बांधकर संवैधानिक तरीके से अपना काम करेंगे। एसोसिएशन की आगे की जो रूपरेखा होगी उसे संगठन आपको अवगत कराता रहेगा। पावर ऑफिसर एसोसिएशन के केंद्रीय कार्यकारिणी को पूरी उम्मीद है कि कल कैबिनेट द्वारा पीपीपी मॉडल को मंजूरी नहीं दी जाएगी क्योंकि लगातार जो बातें निकलकर सामने आ रही है उसे सरकार को भी या पता चल चुका है कि पावर कारपोरेशन ने असंवैधानिक तरीके से पीपीपी मॉडल को पास कराकर एनर्जी ट्रांसपोर्ट से मंजूरी ली है। कल को जब वह कभी भी वैधानिकता पर उसकी जांच पडताल होगी तो वह पूरी तरह फेल साबित होगा।
उत्तर प्रदेश पावर ऑफिसर्स एसोसिएशन के कार्यवाहक अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा, महासचिव अनिल कुमार, सचिव आरपीकेन, संगठन सचिव बिंदा प्रसाद, विनय कुमार ने अपने बयान में कहा जिस प्रकार से पावर कॉरपोरेशन पीपीपी मॉडल को आगे बढा रहा है उसे यह भी मालूम होना चाहिए कि इससे प्रदेश की दोनों बिजली कंपनियां दक्षिणांचल व पूर्वांचल का कोई भला होने वाला नहीं है बल्कि इससे देश के निजी घरानों को बडा लाभ प्राप्त होगा। इसलिए पावर कारपोरेशन को अभी भी समय है अपने निर्णय पर पुनर्विचार करते हुए बिजली कंपनियों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में केंद्र सरकार की नीतियों के आधार पर जो आरडीएसएस सहित अन्य प्रोग्राम चलाए जा रहे हैं उसे पर जोर देना चाहिए।

धार्मिक विवादों से भारत की छवि को हो रहा नुकसान: डॉ. मोईन अहमद

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड आफ इंडिया के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. मोईन अहमद खान ने देश में बढ़ते धार्मिक विवादों और इससे होने वाले सामाजिक नुकसान पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि भारत विश्व के उन चुनिंदा देशों में से है, जहां विभिन्न धर्म और संस्कृतियां एक साथ अस्तित्व में रहती हैं। यह विविधता भारत की पहचान है, लेकिन हाल के वर्षों में धार्मिक स्थलों और पूजा स्थलों को लेकर खड़े किए जा रहे विवाद देश की एकता और सांस्कृतिक विरासत को चोट पहुंचा रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी विवाद क्यों ?

डॉ. मोईन ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद का उल्लेख करते हुए कहा कि दशकों तक चले इस मामले को सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले ने सुलझाया। सभी पक्षों ने इस निर्णय को स्वीकार किया। इसके बावजूद, 1991 में बनाए गए पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम को नजरअंदाज करते हुए नए विवाद खड़े किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह अधिनियम स्पष्ट रूप से निर्धारित करता है कि 15 अगस्त 1947 की स्थिति को आधार मानकर सभी पूजा स्थलों को उसी स्वरूप में संरक्षित किया जाएगा। लेकिन वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद जैसे स्थानों पर विवाद खड़ा किया जा रहा है।डॉ. मोईन ने कहा, “वाराणसी में सर्वे की अनुमति देकर निचली अदालतों ने ऐसी प्रक्रिया शुरू की है, जो पूजा स्थल अधिनियम का उल्लंघन करती है। यदि इस अधिनियम का सही तरीके से पालन हो, तो कोई विवाद खड़ा ही नहीं होगा। यह अधिनियम धार्मिक स्थलों की स्थिति को संरक्षित करने के लिए बना है, ताकि देश में सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखा जा सके।

धार्मिक विवादों का असर और जिम्मेदार शक्तियां

डॉ. मोईन ने कहा कि धार्मिक विवादों से भारत की गंगा-जमुनी तहजीब को गहरा नुकसान पहुंच रहा है। उन्होंने सवाल उठाया कि कौन सी शक्तियां मंदिरों में शिवलिंग और मस्जिदों में शिवजी की मूर्तियां खोजने में लगी हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि इस तरह के विवाद न केवल सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करते हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की छवि को धूमिल करते हैं।डॉ. मोईन ने कहा, “अजमेर शरीफ दरगाह जैसे स्थानों को विवादों में घसीटना खतरनाक है। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती जैसे सूफी संतों की शिक्षाएं समाज को एकता और भाईचारे का संदेश देती हैं। उनकी दरगाह पर हिंदू और मुसलमान दोनों श्रद्धा व्यक्त करते हैं। ऐसे में वहां विवाद खड़ा करना देश की सांस्कृतिक विरासत पर हमला है।”

निजीकरण के विरोध में बिजली कर्मी पूरे दिन बांधेंगे काला फीता

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उप्र के आह्वान पर 10 दिसंबर को प्रदेश के समस्त ऊर्जा निगमों के बिजली कर्मचारी और अभियंता 10 दिसंबर को पूरे दिन काला फीता बांधकर काम करेंगे। संघर्ष समिति ने प्रदेश के मुख्यमंत्री से अपील की है कि ग्रेटर नोएडा और आगरा में किए गए निजीकरण के विफल प्रयोगों की समीक्षा किये बिना प्रदेश में निजीकरण का कोई और प्रयोग न किया जाये।
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों राजीव सिंह, जितेन्द्र सिंह गुर्जर, गिरीश पांडेय, महेन्द्र राय,सुहैल आबिद, पी.के.दीक्षित, राजेंद्र घिल्डियाल, चंद्र भूषण उपाध्याय, आर वाई शुक्ला, छोटेलाल दीक्षित, देवेन्द्र पाण्डेय, आर बी सिंह, राम कृपाल यादव, मो वसीम, मायाशंकर तिवारी, राम चरण सिंह, मो0 इलियास, श्री चन्द, सरयू त्रिवेदी, योगेन्द्र कुमार, ए.के. श्रीवास्तव, के.एस. रावत, रफीक अहमद, पी एस बाजपेई, जी.पी. सिंह, राम सहारे वर्मा, प्रेम नाथ राय एवं विशम्भर सिंह ने आज यहाँ बताया कि 01 अप्रैल 2010 को आगरा शहर की बिजली व्यवस्था टोरेन्ट पॉवर को सौंपी गयी थी। निजीकरण के करार के अनुसार पावर कारपोरेशन टोरेन्ट पॉवर को बिजली देता है। वर्ष 2023-24 में पावर कारपोरेशन ने 4.36 रूपये प्रति यूनिट की दर से टोरेन्ट पॉवर को 2300 मिलियन यूनिट बिजली दी। पॉवर कारपोरेशन ने यह बिजली रूपये 5.55 रूपये प्रति यूनिट की दर से खरीदी थी। इस प्रकार पॉवर कारपोरेशन को वित्तीय वर्ष 2023-24 में लगभग 275 करोड़ रूपये की क्षति हुई। 14 वर्षों में निजीकरण के इस प्रयोग से पॉवर कारपोरेशन को 2434 करोड़ रूपये की क्षति हो चुकी है। उल्लेखनीय है कि आगरा लेदर कैपिटल है, एशिया का सबसे बड़ा चमड़ा उद्योग है और पर्यटन का केन्द्र होने के नाते सबसे अधिक पाँच सितारा होटल आगरा में ही है। यदि आगरा शहर की बिजली व्यवस्था पावर कारपोरेशन के पास बनी रहती तो पॉवर कापोरेशन को आज आगरा से 8 रूपये प्रति यूनिट से अधिक का राजस्व मिलता। ग्रेटर नोएडा में करार के अनुसार निजी कम्पनी को अपना विद्युत उत्पादन गृह स्थापित करना था जिसे उसने आज तक नहीं बनाया है। ग्रेटर नोएडा में इंडस्ट्रियल और कॉमर्शियल लोड 85 प्रतिशत है। इस प्रकार भारी कमाई का क्षेत्र निजी हाथों में चला गया है जिससे पॉवर कारपोरेशन को बड़ी आर्थिक क्षति हो रही है। ग्रेटर नोएडा में निजी कम्पनी किसानों को मुफ्त बिजली नहीं दे रही है। इसके अतिरिक्त घरेलू उपभोक्ताओं को बिजली देने में भी निजी कम्पनी की रूचि नहीं है। इससे उपभोक्ताओं को बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। संघर्ष समिति ने प्रदेश के मुख्यमंत्री एवं ऊर्जा मंत्री से अपील की है कि वे प्रभावी हस्तक्षेप करें जिससे पावर कारपोरेशन प्रबन्धन के निजीकरण के एकतरफा फैसले को कर्मचारियों के व्यापक हित में निरस्त किया जाये। संघर्ष समिति ने कहा है कि बिजली कर्मी सरकार का ध्यानाकर्षण करने हेतु 10 दिसम्बर को पूरे दिन काली पट्टी बांध कर कार्य करेंगे और बिजली व्यवस्था या कार्य में किसी प्रकार का व्यवधान नहीं होने देंगे।

नियमानुसार नही लगाए जा रहे प्रीपेड मीटर

उत्तर प्रदेश में स्मार्ट प्रीपेड मीटर के मामले में जहां बिजली कंपनियां चुपी साधे हुए हैं वहीं निजीकरण की गूंज में सभी बडे स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने वाले निजी घराने उपभोक्ताओं के घर पर बहुत तेजी से मीटर लगा रहे हैं और जानकर आश्चर्य होगा कि जो 5 प्रतिशत उपभोक्ताओं के घर में चेक मीटर पुराने मीटर के रूप में स्थापित करना था उससे उनका कोई लेना-देना नहीं हैं। पावर कॉरपोरेशन शायद या भूल गया है कि उसको निजीकरण की प्रक्रिया के अलावा भी पूरे प्रदेश में उपभोक्ता सेवा व कानून को संवैधानिक परिकटीं में संरक्षित करने की भी जिम्मेदारी है। उपभोक्ता परिषद ने कहा कि पूरे प्रदेश में लगभग 4 लाख 25 हजार स्मार्ट प्रीपेड मीटर लग गए लेकिन 5 प्रतिशत चेक मीटर की जगह केवल ढाई से 3000 ही चेक मीटर लगे हैं। यही नही आज तक उसका कोई भी मिलान नहीं किया गया। स्मार्ट प्रीपेड मीटर निर्माता कंपनियां निजीकरण की आड में अवसर तलाश कर घटिया मीटर लगाने में आमदा है।
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने कहा पावर कार्पाेरेशन प्रबंधन सहित सभी बिजली कंपनियां तथाकथित हडताल और निजीकरण की प्रक्रिया में लगी है और स्मार्ट प्रीपेड मीटर निर्माता कंपनियां निजीकरण में अपना अवसर तलाश कर बहुत तेजी से मीटर लगाने में जुटी है। उपभोक्ता परिषद ने पावर कार्पाेरेशन प्रबंधन से या मांग उठाई है कि उनकी यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वह पीपीपी मॉडल से अपना ध्यान हटाकर प्रदेश के उपभोक्ताओं की समस्याओं और उनके नीतिगत मुद्दों पर भी ध्यान दें।पूरे उत्तर प्रदेश में जिस प्रकार से स्मार्ट प्रीपेड मीटर के मामले में पावर कारपोरेशन ने अनेकों कर्मियों का खुलासा स्वतः किया था। उन कमियों को बिना दूर किये बिना ही स्मार्ट प्रीपैड निर्माता कंपनियां मीटर लगाने में जुटी है।उनको भी मौका मिल गया है कि निजीकरण के मुद्दे पर सभी अपने-अपने काम में जुटे हैं और वह उपभोक्ताओं के घर में कोई भी घटिया मीटर या अच्छा मीटत् लगाकर अपना काम जल्द से जल्द खत्म करना चाहती है।

बिजली निजीकरण का व्यापक प्रभाव पड़ेगा: तिवारी

निजीकरण के विरोध में बिजली कर्मियों के आंदोलन का राज्य कर्मचारी भी समर्थन करेंगे। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष जेएन तिवारी ने सोमवार को जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि बिजली विभाग में निजीकरण का व्यापक प्रभाव सरकारी विभागों पर भी पड़ेगा। बिजली महंगी होगी, यातायात सेवाएं एवं उपभोक्ता को मिलने वाली सभी सेवाएं महंगी हो जाएंगी। उन्होंने बताया कि उड़ीसा एवं मुंबई में निजी बिजली कंपनियां कार्य कर रही हैं। वहां बिजली दर घ्10 रुपये प्रति यूनिट से भी ऊपर है जबकि उत्तर प्रदेश में बिजली दर घ्6 रुपये के आसपास है।
उन्होंने कहा कि पावर कॉरपोरेशन 110000 करोड़ का घाटा दिखाकर निजीकरण की वकालत कर रहा है जबकि बड़े उपभोक्ताओं पर 115000 करोड़ का बकाया है। कॉरपोरेशन अपना बकाया वसूल कर ले एवं लाइन लॉस को नियंत्रित कर ले तो घाटा नहीं रहेगा। जेएन तिवारी ने कहा कि संविदा कर्मियों को निकाले जाने का राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद पहले से ही विरोध कर रही है। वर्ष 2001 के बाद संविदा कर्मियों का नियमितीकरण नहीं किया गया है। जबकि सरकार उनको ग्रेड वेतन, महंगाई भत्ता की सभी सुविधाएं सरकारी कर्मचारियों की भांति ही दे रही है। तिवारी ने सरकारी कर्मचारियों पर एस्मा लगाए जाने पर भी विरोध जताया। उन्होंने कहा कि सरकारी कर्मचारियों के संगठन अनुशासित ढंग से प्रजातांत्रिक ढांचे के अंतर्गत विरोध प्रकट करते हैं, जोकि उनका अधिकार है। उन्होंने निजीकरण एवं संविदा कर्मियों के साथ हो रहे शोषण पर सभी संगठनों को एकजुट होकर संघर्ष करने का आह्वान किया है।

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