- REPORT BY:A.K. SINGH
- EDITED BY:AAJNATIONAL NEWS
-रक्षाबंधन का पर्व आज, बहनें भाइयों की कलाई पर बांधेंगी राखी, लेंगी अपनी रक्षा का वचन
-हुमायूं ने कर्मावती के सुहाग की रक्षा के लिए आक्रमणकारी बादशाह पर हमला कर किया था परस्त, वेदों पुराणों में अंकित है अनेक गाथाएं
लखनऊ। भाई-बहन को स्नेह की अटूट डोरी में बांधने वाला एवं हर्सोल्लास के साथ मनाया जाने वाला रक्षाबंधन के पवित्र सामाजिक त्यौंहार को लोग पूर्णश्रद्धा
तथा उत्साह के साथ परंपरागत ढंग से आज भी मानते हैं।रक्षाबंधन के पवित्र त्यौंहार का इतिहास अति प्राचीन एवं गौरवमयी है। यह त्यौहार प्राचीन काल में भाई-बहन का त्यौंहार न होकर शौर्य एवं पराक्रम का त्यौंहार था। जो द्वापर युग में भाई-बहन को स्नेह की डोर में बांधने वाला त्यौंहार बना।
सर्वप्रथम राजा इंद्र ने रक्षा सूत्र अपने धर्म पत्नी इंद्राणी से असुरों पर विजय प्राप्त करने हेतु बंधवाया था। यह त्यौहार भाई बहनों के अतिरिक्त ब्राह्मणों का भी त्यौंहार माना जाता है। श्रवण मास की पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्यौंहार मनाया जाता है। यह त्यौंहार सभी धर्मों द्वारा मनाया जाता है। इस दिन बहन भाई के हाथ में राखी बांधती है। भाई यथाशक्ति उसको उपहार देते है। इस त्यौहार पर भाई को राखी बांधकर बहन उसे अपनी रक्षा का भार सौंपती है। इस दिन स्नानादि कर भाई बहन नये वस्त्र धारण कर आमने-सामने बैठते हैं।बहन भाई को तिलक लगती है। फिर उसका मुंह मीठा करती है। तत्पश्चात उसकी दाहिनी कलाई पर राखी बांधती है। भाई बहन के यथा शक्ति उपहार भेंट करता है। रक्षाबंधन बहुत प्राचीन त्यौंहार है। जो परंपरागत पीढ़ी दर पीढ़ी हर्सोल्लास के साथ मनाया जाता हैं। भविष्य पुराण में वर्णित है कि एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से कहा कि केशव आप कृपा कर रक्षाबंधन का महत्व बताएं।इस पर सोलह कलावतारी भगवान श्री कष्ण ने कहां कि देवताओं और राक्षसों से बारह वर्ष तक अनवरत युद्ध चला। अंत में देवराज इंद्र की पराजय हो गई और देवता अंतिहीन हो गए।पराजित इंद्र अमरावती वापस आ गए। दैत्यों ने तीनों लोकों पर अपना राज स्थापित कर लिया। इंद्र पथ भी हथिया लिया। यज्ञ वेद पाठन बंद कर दिया। तब इंद्र घबराकर गुरु बृहस्पति की शरण में गए थे। गुरु बृहस्पति ने रक्षा विधान बनाया। श्रावण पूर्णिमा के यह विधान कराया गया कि येन, बुद्धि, बालि, राजा दान, बैद्वो, महाबल, तेन, स्वाभिकत, धामिरक्षो, याचन, याचल इस मंत्र को पढ़कर गुरु बृहस्पति ने इंद्र की दाहिनी कलाई में रक्षा कवच बांध दिया। इसी रक्षा कवच के बल पर इंद्र ने घोर युद्ध कर दानवों को पराजित कर दिया। इस प्रकार अपना खोया वैभव प्राप्त किया। इस तरह से भगवान श्री कष्ण ने युधिष्ठिर को रक्षाबंधन पर्व का महत्व समझाया। इसी दिन यह रक्षाबंधन त्यौंहार ब्राह्मणों पुरोहितों किसी भी व्यक्ति को रक्षा सूत्र बांधते हैं। वह रक्षा विधान मंत्र येन बद्वों बलि राजा दान बैदों महाबल मंत्रोच्चारण करते हैं।
भाई बहन अटूट डोर में बांधने वाला रक्षाबंधन का पवित्र त्योहार द्वापर युग में भाई-बहन का त्योहार बना। इसका प्रमाण पौराणिक ग्रंथों में इस प्रकार वर्णित है कि एक बार भगवान श्री कष्ण के हाथ में चोट लग गई खून बहने लगा।यह देखकर द्रोपती ने तत्काल अपनी साड़ी का छोर बांध दिया। इस प्रकार का बदला भगवान श्रीकृष्ण ने उस समय चुकाया जब दुर्योधन के दरबार में दुशासन द्रोपती का चीर हरण कर रहा था और महापाल की दुर्योधन द्वारा कराई जा रहे का कोई भी विरोध नहीं कर पा रहा था।असहाय द्रौपदी को भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी की साड़ी उतनी बढ़ाती जितनी दुशासन खींचता जा रहा था। बताया जाता है की जब मेवाड़ की रानी कर्मावती द्वारा भेजी गई राखी दिल्ली में बादशाह हुमायूं के दरबार में पहुंचता है। जिनके पति राणा सांगा ने आपके पिता से युद्ध किया था। इस बात का विरोध करते हुए सम्राट हुमायूं ने दरबारियों को काट करते हुए कहां की दोस्ती दुश्मनी हम नहीं जानते हम तो सिर्फ यह जानते हैं कि एक बहन ने अपने भाई से रक्षा की गुहार की है। मुझे अपनी बहन की रक्षा के लिए चाहे प्राण न्यौछावर करना पड़े करूंगा।
सम्राट हुमायूं राखी की लाज रखते हुए सेना सहित गुजरात के आक्रमणकारी बादशाह पर आक्रमण कर उसे परस्त करते हुए एक हिंदू बहन कर्मावती की रक्षा मुस्लिम भाई करता है। कहने का तात्पर्य यह है कि रक्षाबंधन का त्योहार ना तो किसी जाति धर्म संकीर्ण बेड़ियों में किसी को बंधता है। वो बंधता है तो वह सिर्फ बहन के साक्षात अटूट प्रेम के रिश्ते को बहुत सी बहाने ऐसी भी होती हैं। जिनके भाई नहीं होते हैं। जिनके बहनें नहीं होती है। वह दूसरे को अपनी बहन बना लेते हैं और बहन अपना भाई समझती है और रक्षा सूत्र की परंपरा कायम रखती है। ऐसे भाई बहनों रक्षा सूत्र बंधवाते हैं और वो संगे भाइयों बहनों से भी ऊंचा दर्जा प्रदान कर हर्सोल्लास के साथ त्यौंहार मानते हैं। त्योंहार यहां पर सामाजिक एवं राष्ट्रीय स्तर पर बड़े ही धूमधाम व उत्साह के साथ आज भी मनाया जाता है।जिसकी मिसाल वेदों पुराणों में भी उल्लिखित की गई है।
जगह-जगह पर सज गई राखी की दुकानें
बहन और भाई के लिए सबसे अटूट और प्रेम का त्यौंहार रक्षाबंधन को लेकर सरोजनीनगर क्षेत्र में जगह-जगह पर राखी की दुकानें सज धज कर तैयार हो गई है ।आज बहनें भाइयों की कलाई पर बांधने के लिए राखी की खरीदारी करेंगी।इस राखी को आज से लगभग दो दशक पूर्व गजला कहा जाता था, लेकिन जैसे-जैसे समय में परिवर्तन होता गया नयी डिजाइनिंग राखियां भी अनेक प्रकार की बाजारों में अपनी धूम मचाने लगी। यहां तक सोने चांदी की राखियां भी आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। बहनें अपनी क्षमता के अनुसार भाइयों की कलाईयों में बांधने के लिए रक्षा सूत्र यानी राखी और मिठाई की खरीदारी करेंगी।गौरी, बंथरा, बिजनौर, बनी, कटी बगिया, हरौनी, लतीफ नगर सहित अन्य शहरी तथा ग्रामीण इलाकों के गांवों एवं कस्बों में राखियों की दुकानें लगी हुई है।