लखनऊ। उत्तर प्रदेश पावर ऑफिसर एसोसिएशन की प्रांतीय कार्य समिति की आज एक आपत बैठक फील्ड हॉस्टल कार्यालय में संपन्न हुई। बैठक में मुख्य रूप से 1992 बैच के अभियंताओं को मुख्य अभियंता के पद पर पदोन्नति अभिलंब किए जाने पर पुरजोर मांग उठाई गई। प्रांतीय कार्य समिति के पदाधिकारियो ने कहाकि 1992 बैच के अभियंताओं की पदोन्नति की बात आते ही कुछ आरक्षण विरोधी तत्व सक्रिय हो गए हैं। जो येन केन प्रकारेण यह षड़यंत्र करने में जुटे हैं कि दलित अभियंताओं की पदोन्नति में बाधा उत्पन्न हो। इस बैच के अभियंताओं की रिपोर्ट को देखकर कुछ अभियंता अच्छी रिपोर्ट इसलिए नहीं लिख रहे हैं जिससे पदोन्नति में उनके नंबर कम आए। वह सुपर सीड हो जाए। सभी को पता है कि उत्तर प्रदेश में दलित अभियंताओं को सपा सरकार में रिवर्ट किया गया। अब ज्यादातर अभियंताओं को बिजली कंपनियों में ऐसे क्षेत्रों में तैनात किया जा रहा है जहां के पैरामीटर काफी खराब है। उसके आधार पर उन पर कार्यवाही का दबाव बनाया जाता है। जिस पर प्रबंधन को पुनर्विचार करना चाहिए। नोएडा की तुलना बलिया, कुशीनगर और बांदा से की जाएगी तो निश्चित ही गलत संदेश जाएगा। संगठन ने इस बात पर भी चिंता जताई की 1992 में जो मुख्य अभियंता के चयन के लिए मानक पर अपनी अहर्ता पूरी करता हैं। उसमें से कुछ अभियंताओं के खिलाफ छोटे-मोटे केंस जानबूझकर लंबे समय से लंबित है ताकि उनकी पदोन्नति न हो पाए। ऐसे मामलों में प्रबंधन को अभिलंब विचार करते हुए सभी ऐसे मामलों का निस्तारण करना चाहिए।
उत्तर प्रदेश पावर ऑफिसर एसोसिएशन के अध्यक्ष के बी राम, कार्यवाहक अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा, उपाध्यक्ष पीएम प्रभाकर, सचिव आर पी केन, संगठन सचिव हरिचंद वर्मा, बिंदा प्रसाद, सुशील कुमार वर्मा, नेकीराम, विनय कुमा,र दीपक कुमार, सुभाष चंद्र ने कहा कि बडे पैमाने पर सभी बिजली कंपनियों मे दलित अभियंताओं के छोटे-मोटे प्रकरण जिनका निस्तारण समय से नहीं हो पा रहा है उससे उनका उत्पीडन होता है। ऐसे में प्रबंधन को सभी ऐसे मामलों को तब तत्परता के आधार पर निस्तारित करते हुए उसका समाधान करना चाहिए। पावर ऑफिसर एसोसिएशन की केंद्रीय कार्य समिति ने सभी बिजली कंपनियों का दौरा करके एक रिपोर्ट तैयार की है जिससे यह सिद्ध होता है कि जानबूझकर स्थानांतरण नीति का उल्लंघन करके दलित अभियंताओं को परेशान किया गया। दलित अभियंताओं के साथ भेदभाव हुआ है पावर ऑफिसर एसोसिएशन ने ऊर्जा मंत्री से समय मांगा है समय मिलते ही ऊर्जा मंत्री को पूरी बात से अवगत कराया जाएगा और जरूरत पडने पर मुख्यमंत्री से भी मुलाकात की जाएगी।
पावर कारपोरेशन में शुरू संविदा कार्मिकों के तबादले
बिजली विभाग के संविदा कर्मी पहली बार तबादले की जद में आए हैं। उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन शीर्ष प्रबंधन के फैसले के बाद बिजली कंपनियों को आउटसोर्स कार्मिक मुहैया कराने वाली एजेंसियों ने धड़ाधड़ तबादले शुरू कर दिए हैं। तबादले होने से इन कार्मिकों में रोष है। लगभग 8 से 12 हजार रुपये मासिक पारिश्रमिक पर काम कर रहे इन कार्मिकों के सामने दिक्कत यह है कि तबादला हो जाने पर इस पारिश्रमिक से उनका गुजारा कैसे होगा। उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन व इसकी सहयोगी कंपनियों में पहली बार न्यूनतम पारिश्रमिक पर काम कर रहे संविदाकर्मियों के तबादले शुरू किए गए हैं।
बिजली कंपनियों में कुल 31738 स्थाई कार्मिक हैं। जबकि स्थाई कार्मिकों की संख्या से ढाई गुना अधिक 85098 आउटसोर्स पर रखे गए कार्मिक हैं ये वह कार्मिक हैं जो बिजली उपकेंद्रों पर बहुतायत में तैनात किए गए हैं। लाइनमैन, फाल्ट की शिकायत मिलने पर सीढ़ी खींचने तथा अन्य सभी प्रकार के कामों में लगाए गए हैं। बिजली से संबंधित कोई कोई भी दिक्कत आने पर उपभोक्ताओं के संपर्क में सबसे पहले यही कार्मिक आते हैं। विभाग में सालों से संविदाकर्मी के तौर पर काम कर रहे इन कार्मिकों का वेतन अब भी आठ से बारह हजार रुपये मासिक के बीच ही है। कई बार समान काम समान वेतन की मांग इनकी तरफ से उठाई गई लेकिन आउटसोर्स एजेंसी के माध्यम से इनकी तैनाती होने के कारण इनके बारे में कोई विचार नहीं किया गया। ये कार्मिक क्षेत्रीय अवर अभियंता के अधीन काम करते हैं। अवर अभियंता द्वारा उपस्थिति का विवरण आगे बढ़ाए जाने पर ही एजेंसी द्वारा इनका वेतन बनाया जाता है।बिजली कंपनियों में ये तबादले चर्चा का विषय बने हुए हैं। उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग द्वारा हाल में प्रदेश के विभिन्न शहरों में बिजली दरों पर आयोजित सुनवाई में कई स्थानों पर यह मुद्दा उठाया गया। वाराणसी में आयोजित सुनवाई में विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने आयोग को लिखित पत्र देकर तबादले का विरोध किया। उन्होंने इन कामिकों के लिए समान काम के लिए समान वेतन की मांग भी कई बार उठाई है।