-परिसीमन के बाद जोर पकड़ सकती है बुंदेलखंड और पश्चिमी यूपी को अलग राज्य की मांग,जनगणना के बाद बढ़ सकती हैं 100 सीटें
- REPORT BY:K.K.VARMA
- EDITED BY:AAJNATIONAL NEWS
लखनऊ 05 दिसंबर। वर्ष 2025 में प्रस्तावित जनगणना के बाद उत्तर प्रदेश की आबादी 25 करोड़ से ज्यादा हो जाएगी। करीब 24 करोड़ की जनसँख्या, 75 जिले, 351 तहसील, 826 विकासखंड, 57691 ग्राम पंचायत, 403 विधानसभा और 100 विधानपरिषद वाले सबसे बड़े प्रदेश यानि उत्तर प्रदेश की क्या तस्वीर बदलने वाली है?उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है जहाँ चुनाव को लेकर चुनाव आयोग को भी कड़ी मेहनत करनी पड़ती हैं। पश्चिम से पूर्व और दक्षिण से उत्तर तक विभिन्न भाषाओँ और संस्कृति से भरे इस प्रदेश की जनसँख्या अब तेजी से बढ़ रही है। 2025 में प्रस्तावित जनगणना के बाद उत्तर प्रदेश की आबादी 25 करोड़ से ज्यादा हो जाएगी। परिसीमन के बाद बुंदेलखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाने की मांग फिर जोर पकड़ने वाली है।
परिसीमन के बाद उत्तर प्रदेश में करीब 100 विधानसभा सीटें बढ़ जाएँगी, जिसके यह करीब 503 विधानसभा वाला देश का सबसे बड़ा राज्य बन जायेगा, इतना इसकी व्यवस्था संभालने में कई मुश्किलों का सामना करना पद सकता है। सवाल है की क्या 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश का बटवारा संभव है?अगर पुराने कुछ घटनाक्रमों पर नज़र डाले तो भारतीय जनता पार्टी छोटे राज्यों की पक्षधर रही है तो वही समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश का बटवारा नहीं चाहती। बसपा प्रमुख मायावती ने अपनी सरकार में बटवारे पर सहमति जताई थी।उन्होंने 21 नवम्बर 2011 को उत्तर प्रदेश का बटवारा कर 4 छोटे राज्य बनाने का प्रस्ताव विधानसभा में पास किया था। इस प्रस्ताव के तहत हरित प्रदेश, अवध प्रदेश, बुंदेलखंड और पूर्वांचल राज्य बनाने की बात कही गयी थी, प्रस्ताव पारित होने के बाद इसे केंद्र सरकार को भेजा गया था।
राजनीति के जानकारों का मानना है कि राजनितिक दल अपने फायदे और नुकसान देखते हुए उत्तर प्रदेश के बटवारे की बात करते हैं, मायावती के इस निर्णय का साफ़ मतलब था कि उस समय उनकी पार्टी की पकड़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पूर्वांचल में मजबूत थी और अलग राज्य बनाकर वो इन दो क्षेत्रों में अपना वर्चस्व कायम रखना चाहती थी।2011 में मायावती के इस प्रस्ताव का समाजवादी पार्टी ने जमकर विरोध किया था, उन्होंने उस समय अखंड उत्तर प्रदेश का नारा दिया था। समाजवादी पार्टी कभी भी इसके लिए तैयार नहीं होगी क्योंकि सपा का कोर वोट बैंक यादव और मुस्लिम को माना जाता है ।यदि बटवारा हुआ तो ये वोट बैंक बिखर जायेगा जिसका नुकसान समाजवादी पार्टी को होगा।
मास्टर स्ट्रोक खेलने के लिए चर्चाओं में रहने वाली भारतीय जनता पार्टी हर वो कार्य करने से पीछे नहीं हटेगी जिससे विपक्षी दलों का नुकसान होता हो। यदि भाजपा बटवारे वाले फार्मूले पर आगे बढती है तो ऐसे में सम्भावना है कि राज्यों का सीमांकन इस तरह किया जायेगा कि राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के एजेंडे को जिन्दा रखा जा सके। आरएसएस और भाजपा छोटे राज्यों के समर्थक रहे हैं। वर्ष 2000 में एनडीए सरकार में ही उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड, मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ और बिहार से झारखंड को अलग कर नया राज्य बनाया गया था, उस समय अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे।
केन्द्रीय मंत्री संजीव बालियान पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाने के पक्ष में हैं तो वहीँ पूर्व केन्द्रीय मंत्री उमा भारती भी बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने की मांग कर चुकी हैं। जानकारों का मानना है कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इसके पक्ष में नहीं हैं। 2018 में राजनाथ सिंह ने कहा था कि हमारा उत्तर प्रदेश एक ऐसा राज्य है जिसमे न तो प्राकृतिक सम्पदा की कमी है और न ही आव्यश्यक संसाधनों की, इसके बटवारे की जरुरत नहीं है।
जानकारी के अनुसार 2025 के जनवरी या फ़रवरी माह में जनगणना होने की सम्भावना है जिसकी रिपोर्ट 2026 तक सौंप दी जाएगी यानि तब तक जनगणना के आंकड़े सामने आ जायेंगे। अनुमान है कि उत्तर प्रदेश की जनसँख्या 25 करोड़ के पार चली जाएगी यानि दुनिया में अमेरिका, इंडोनेशिया, पकिस्तान जैसे अन्य देशों के बाद सबसे ज्यादा आबादी भारत के एक प्रदेश यानि उत्तर प्रदेश में निवास करेगी।
सूत्रों की माने तो जनगणना के आधार पर परिसीमन किया जायेगा और औसत जनसंख्या रखी जाएगी। वर्तमान में प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में औसतन करीब 4 लाख मतदाता हैं, चुनाव के दौरान इतनी बड़ी जनसँख्या को साधना चुनौतीपूर्ण और महंगा पड़ता है साथ विकास कार्यों को अंतिम व्यक्ति पहुचाने में भी समस्याएं आती हैं। जानकारों का मानना है की परिसीमन ही बटवारे का आधार बनेगा। परिसीमन के बाद विधानसभा की करीब 100 सीटें बढ़ जाएँगी और उत्तर प्रदेश करीब 503 सीटों वाला सबसे बड़ा प्रदेश बन जायेगा यानि एक ऐसा राज्य जो पुरे देश पर अपना दवाब बना सकता है ऐसे में बटवारे की प्रबल सम्भावना है।
वर्ष 2011 में मायावती सरकार द्वारा दिया गया प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास है, केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने दिसम्बर 2011 में नौ सूत्री स्पष्टीकरण मांगते हुए प्रस्ताव राज्य सरकार को भेज दिया था जिसके बाद सपा सरकार में ये चर्चा ठन्डे बस्ते में थी लेकिन अब केंद्र और प्रदेश दोनों ही भाजपा की सरकार है परन्तु राजनीति में जिस तरह से योगी आदित्यनाथ का कद बढ़ा है उसे देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि परिसीमन या बटवारे का कोई भी निर्णय योगी आदित्यनाथ की सलाह के बिना लेना संभव नहीं है। क्या केंद्र सरकार ऐसा कोई फार्मूला ला सकती हैं जिससे परिसीमन के बाद सीटें भी न बढे और बटवारा भी न हो।जानकारों का मानना है कि परिसीमन के बाद सीटों की संख्या को फ्रिज करना भी एक विकल्प हो सकता है जिससे बटवारे की संभावना ख़त्म हो जाएगी।