सरोजनीनगर:चांदे बाबा तालाब से नहीं उजाड़े गरीबों के घर,क्लिक करें और भी खबरें

-डॉ. राजेश्वर सिंह ने गढ़ी चुनौटी निवासियों की रक्षा के लिए कदम बढ़ाया

  • REPORT BY:A.S.CHAUHAN || EDITED BY:AAJ NATIONAL NEWS DESK

लखनऊ।बंथरा के गढ़ी चुनौटी के निवासी अपने घरों के विध्वंस के खतरे का सामना कर रहे थे, क्योंकि राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी ) द्वारा अतिक्रमण हटाने का आदेश जारी किया गया था। 9 नवम्बर 2022 और 30 दिसम्बर 2022 को संयुक्त समिति की रिपोर्ट पर आधारित था, जिसमें गढ़ी चुनौटी में चांदे बाबा तालाब के आसपास के क्षेत्रों में अतिक्रमण का उल्लेख किया गया था। इन निवासियों के पास वर्षों से अपने घर और भूमि पर कब्जा था। इनकी कुल भूमि 36.909 हेक्टेयर थी, जिसमें से केवल 3.1859 हेक्टेयर भूमि को अतिक्रमित माना गया था। डॉ. राजेश्वर सिंह ने इन निवासियों की कानूनी मदद की और उनका पक्ष पेश किया।
डॉ. राजेश्वर सिंह ने यह तर्क दिया कि अतिक्रमण हटाने के आदेश में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन किया गया था, क्योंकि निवासियों को सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया। 8 अगस्त 2024 को न्यायाधिकरण ने यह टिप्पणी की कि अतिक्रमण हटाने में अधिक समय नहीं लिया जा सकता और जिलाधिकारी को इसे प्रभावी रूप से लागू करने का निर्देश दिया था। 19 नवम्बर 2024 को मामले की सुनवाई के दौरान यह दर्ज किया गया कि जिलाधिकारी लखनऊ ने अतिक्रमण हटाने के लिए पूरी ताकत के साथ कदम उठाए थे और इसे तीन महीने में पूरा करने का आश्वासन दिया था। डॉ. सिंह ने यह कहा कि पहले निवासियों की पुनर्वास योजना पर ध्यान देना चाहिए और फिर अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए।
अपने कानूनी कौशल का उपयोग करते हुए, डॉ. राजेश्वर सिंह ने राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण से स्थगन आदेश प्राप्त किया, जिससे निवासियों के घरों के विध्वंस पर रोक लग गई। यह आदेश इस बात को सुनिश्चित करता है कि विध्वंस केवल उचित सुनवाई और प्रक्रियाओं के बाद ही किया जा सके। डॉ. सिंह ने यह भी सुनिश्चित किया कि जिलाधिकारी द्वारा दी गई प्रक्रिया को सही तरीके से लागू किया जाए।
डॉ. सिंह ने न्यायाधिकरण में यह भी कहा कि पहले अतिक्रमण से मुक्त 33 हेक्टेयर भूमि का संरक्षण और विकास किया जाना चाहिए। उन्होंने जोर दिया कि जब तक पुनर्वास योजना पूरी नहीं होती, तब तक किसी भी प्रकार की विस्थापन प्रक्रिया नहीं होनी चाहिए। उनकी कानूनी पहल ने यह सुनिश्चित किया कि पुनर्वास का ध्यान पहले रखा जाए, और पुनर्वास के बिना किसी भी कदम को उठाने से रोका गया।
डॉ. राजेश्वर सिंह की पहल ने उनके समर्पण को प्रदर्शित किया, जो उन्होंने विशेष रूप से अनुसूचित जातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए किया। उनके कार्यों ने यह स्पष्ट किया कि वे कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा करने में विश्वास रखते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि उन्हें अनावश्यक रूप से विस्थापित या उपेक्षित न किया जाए।

पशु आश्रय केंद्रों में बंद मवेशियों की मौत से कम पढ़ने लगी संख्या

-भूख मिटाने के लिए टाट की बोरियां, कागज, पॉलिथीन, कूड़ा, करकट खा रही गाय, गौ सेवा संरक्षण के नाम पर की जा रही अवैध वसूली, जनप्रतिनिधि अधिकारी भी डकार रहे रुपया

केंद्र सरकार ने गौ हत्याओं को लेकर पूरे देश में इनके काटने पर रोक लगाई गई, लेकिन सबसे ज्यादा इसकी रोक का असर राज्य में लगता हुआ दिखाई दिया, क्योंकि सन् 2017 में उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने सबसे पहले गो तस्करी पर रोक लगाने के लिए कड़े और कठोर कदम उठाए गए। उसके बाद गाय एवं बछड़ों की संख्या इस तरह बड़ी की ग्रामीण किसानों के खेतों में खड़ी फसलों को बड़े पैमाने यह आवारा पशु नुकसान पहचाने लगे। इनकी बढ़ती संख्या ने किसानों के सामने इतनी बड़ी समस्या खड़ी कर दी कि हर तरफ शोर-शराबा होने लगा।

किसानों की फसलों को बचाने के लिए मुख्यमंत्री ने ग्राम पंचायतों में पशु आश्रय केंद्र खोलवाने का निर्णय लिया गया। क्षेत्र में कई जगहों पर पशु आश्रय केंद्र बनाए गए।जिनके लिए धनराशि भी सरकार द्वारा ग्राम पंचायत स्तर पर भेजी जा रही है, लेकिन इसमें भी जनप्रतिनिधि और अधिकारी, कर्मचारी बंदर बांट करने में कोई परहेज नहीं कर रहे हैं।बल्कि किसानों को राहत देने के लिए तैयार की गई यह योजना भी कमाऊं पूत बन गई। यहां तक गौ सेवा संरक्षण का दावा करने वाले कुछ लोग पशु आश्रय केंद्रों पर जाकर निरीक्षण के बहाने अवैध वसूली करने में कोई कोताही नहीं बरत रहे हैं। धीरे-धीरे पशु आश्रय केंद्रों की घटिया व्यवस्था और जिम्मेदारों द्वारा की जा रही लूट-खसोट के चलते गौशालाओं में बंद पशुओं को भरपेट चारा नसीब नहीं हो पा रहा है। नाही चिकित्सा व्यवस्था व्यापक स्तर पर उपलब्ध कराई जा रही हैं। जिसकी वजह से इनकी मौतों का ग्राफ काफी बढ़ गया है और इनकी संख्या कम पड़ने लगी है। अभी सर्दी के इन दिनों में पशु आश्रय केंद्रों में बंद पशुओं के लिए काऊ कोर्ट की व्यवस्था को लेकर कोटेदारों से बोरियों मांगी थी। कोटेदारों ने अधिकारियों द्वारा दिए गए आदेश के मुताबिक केंद्रों पर बोरियों तो पहुंचा दी गई, लेकिन यह मवेशियों के तन पर दिखाई नहीं दी। अगर कहीं कुछ शिकवा शिकायत लोगों द्वारा की गई तो फोटो खींचने के लिए यदा कदा पशुओं को पहनकर दिखावा किया गया। जबकि गौ सेवा संरक्षण का दावा करने वाले पशु आश्रय केंद्रों पर जांच करने के दौरान केंद्रों की बदहाली देखकर भी भ्रष्ट जनप्रतिनिधियों और कर्मचारीयों की वाहवाही करने से परहेज नहीं किया गया। यहां तक उनकी यह तारीफ सुखिया भी बन गई, लेकिन हकीकत क्या है इसकी सच्चाई आज भी पशु आश्रय केंद्रों पर देखी जा सकती है। जो अव्यवस्था के चलते पशु प्रतिदिन तड़प तड़प कर दम तोड़ रहे हैं।

क्षेत्र में बेंती,अमावां,कुरौनी, नगर पंचायत बंथरा, परवर पश्चिम, कल्ली पूरब, ऐंन आदि स्थानों पर स्थित पशु आश्रय केंद्रों की स्थिति सरकार की व्यवस्था के अनुसार बहुत ही कम संचालित हो पा रहे हैं। बताया जाता हैं कि इनकी भूख भरपेट चारा न मिलने से नहीं मिटती और जो बोरियों भी कुछ दिखावे मात्र के लिए ही इन पर काऊ कोर्ट के रूप में पहनाई गई उनको भी खाकर अपनी भूख मिटाई गई।यहां तक इन आवारा पशुओं को कागज, प्लास्टिक पॉलिथीन, कूड़ा, करकट आदि खाते हुए अक्सर देखा जाता है।ऐसी ही एक तस्वीर बनी चौराहे पर संतोष सिंह की दुकान पर रखें अखबार को एक आवारा गाय ही भूख मिटाने के लिए आहार बना रही हैं। अधिकारी पूछने पर अपना रटा-रटाया जवाब देते रहते हैं और किया कुछ नहीं जाता खानापूर्ति करके गायों की धनराशि सभी खा जा रहे हैं यह बात तर्कसंगत ज्यादा अच्छी लगती है।

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